चोटी की पकड़–27

जेट्टी से बँधी हुई जहाज़ की मोटी रस्सियाँ और लोहे की साँकलें खोली गईं।


 जहाज़ घूमा। फिर हुगली नदी से होकर दक्षिण की ओर चला। 

ऊपर के पीछेवाले हिस्से में सेक्रेटरी, कुछ कर्मचारी और ऊँचे पदवाले के अफसर बैठे। 

एजाज हुगली में बँधे हुए अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन और अमेरिकन बड़े-बड़े जहाज़ देख रही थी और उनसे होनेवाले विशाल व्यापार पर अंदाजा लगा रही थी।

 मधुर दखिनाव के तेज झोंके लग रहे थे। दिल को कोई रह-रहकर गुदगुदा रहा था। 

जहाज़ फोर्ट विलियम किले के पास आया। किनारे लड़ाई के दो जहाज़ बँधे थे। इनकी बनावट दूसरी तरह की थी। 

रंग पानी से मिलता हुआ। एजाज ने चाव से इन जहाजों को देखा। एक नजर हाईकोर्ट की विशाल इमारत पर डाली। 

एडेन गार्डेन की याद आई, यहाँ हवाखोरी के लिए वह बहुत आ चुकी है। यह एक शिकारगाह भी है। 

शाम को शहर के रईस बड़ी संख्या में आते हैं, टहलते हैं और बेण्ड सुनते हैं। जहाज़ तेजी से बढ़ने लगा।

राजा साहब ने घंटी बजायी। एक बेयरा आया।

"लाल पानी," राजा साहब ने बेयरा से कहा।

बेयरा शेम्पेन की बोतल, बर्फ, छोटा टंबलर और पेग ट्रेपर लाकर रख गया। 

गुलशन एजाज की बग़ल में बैठकर टंबलर में बर्फ और शेम्पेन मिलाने लगी। 

पाचक ब्राह्राण कटलेट, चाप और कबाब चाँदी की तश्तरियों पर रख गया। 

कहकर ट्रे पर ढक्कनदार चाँदी के गिलासों में पानी ले आया। रखकर तौलिया लेकर खड़ा रहा। 

गुलशन ने दो पेग भरे। एक हाथ में रखा, एक बढ़ाकर एजाज को दिया। 
एजाज ने पेग चूमकर राजा साहब के हाथ में दिया, फिर अपना लिया। गुडलक हुआ। दोनों पीने लगे।

   0
0 Comments